Sahir Ludhiyanvi - Taj Mahal | ताज महल - साहिर लुधियानवी

Sahir Ludhiyanvi - Taj Mahal | ताज महल - साहिर लुधियानवी

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05/03/2021 10:12PM

Episode Synopsis "Sahir Ludhiyanvi - Taj Mahal | ताज महल - साहिर लुधियानवी"

ताज तेरे लिए इक मज़हर-ए-उल्फ़त ही सही तुझ को इस वादी-ए-रंगीं से अक़ीदत ही सही मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझ से बज़्म-ए-शाही में ग़रीबों का गुज़र क्या मअ'नी सब्त जिस राह में हों सतवत-ए-शाही के निशाँ उस पे उल्फ़त भरी रूहों का सफ़र क्या मअ'नी मेरी महबूब पस-ए-पर्दा-ए-तश्हीर-ए-वफ़ा तू ने सतवत के निशानों को तो देखा होता मुर्दा-शाहों के मक़ाबिर से बहलने वाली अपने तारीक मकानों को तो देखा होता अन-गिनत लोगों ने दुनिया में मोहब्बत की है कौन कहता है कि सादिक़ न थे जज़्बे उन के लेकिन उन के लिए तश्हीर का सामान नहीं क्यूँकि वो लोग भी अपनी ही तरह मुफ़्लिस थे ये इमारात ओ मक़ाबिर ये फ़सीलें ये हिसार मुतलक़-उल-हुक्म शहंशाहों की अज़्मत के सुतूँ सीना-ए-दहर के नासूर हैं कोहना नासूर जज़्ब है उन में तिरे और मिरे अज्दाद का ख़ूँ मेरी महबूब उन्हें भी तो मोहब्बत होगी जिन की सन्नाई ने बख़्शी है उसे शक्ल-ए-जमील उन के प्यारों के मक़ाबिर रहे बेनाम-ओ-नुमूद आज तक उन पे जलाई न किसी ने क़िंदील ये चमन-ज़ार ये जमुना का किनारा ये महल ये मुनक़्क़श दर ओ दीवार ये मेहराब ये ताक़ इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले कर हम ग़रीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़ मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझ से

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