Ranjish hi sahi - रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ | Ghazal by Ahmad Faraz | Poetry World Org

Ranjish hi sahi - रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ | Ghazal by Ahmad Faraz | Poetry World Org

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04/02/2021 5:30PM

Episode Synopsis "Ranjish hi sahi - रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ | Ghazal by Ahmad Faraz | Poetry World Org"

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ कुछ तो मिरे पिंदार-ए-मोहब्बत का भरम रख तू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिए आ पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तो रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया ही निभाने के लिए आ किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ इक उम्र से हूँ लज़्ज़त-ए-गिर्या से भी महरूम ऐ राहत-ए-जाँ मुझ को रुलाने के लिए आ अब तक दिल-ए-ख़ुश-फ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें ये आख़िरी शमएँ भी बुझाने के लिए आ - Ahmad Faraz

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