203. गुणों के पहलू

08/12/2025 4 min Temporada 4 Episodio 203

Listen "203. गुणों के पहलू"

Episode Synopsis

श्रीकृष्ण कहते हैं, "जब देहधारी जीव सत्त्वगुण की प्रधानता में मृत्यु को प्राप्त होता है, तब वह उत्तम ज्ञान वालों के शुद्ध लोकों को प्राप्त होता है(14.14)। जो व्यक्ति रजोगुण की प्रधानता में शरीर त्याग करता है, वह कर्मों में आसक्त लोगों के बीच जन्म लेता है। और जो तमोगुण में लीन होकर मृत्यु को प्राप्त होता है, वह मूढ़ (अविवेकी या अज्ञानमय) योनियों में जन्म लेता है"(14.15)। ​​श्रीकृष्ण ने पहले जीवन-मृत्यु-जीवन के बारे में समझाया था जहाँउन्होंने कहा था कि जब कोई मृत्यु के समय उनका स्मरण करता है तो वह उन तक पहुँच जाता है, लेकिन उन्होंने आगाह किया कि व्यक्ति अपने जीवनकाल में जो अभ्यास करता है, वही निर्धारित करता है कि उसकी मृत्यु के पश्चात क्या होगा (8.5 और 8.6)। यह इंगित करता है कि जीवन से मृत्यु और फिर जीवन में संक्रमण स्वाभाविक है, इसमें कोई विस्मय नहीं है। यदि किसी का जीवन सत्वगुण प्रधान है, तो संक्रमण सत्व के माध्यम से ही होगा। यही बात रजोगुण और तमोगुण के साथ भी लागू होती है। श्रीकृष्ण इन तीन गुणों के द्वारा उत्पन्न विभिन्न कर्मफलों का वर्णन करते हुए कहते हैं, "सत्वगुण का फल सद्भाव और पवित्रता है। रजोगुण का फल दुःख है। तामसिक कर्मों का फल अज्ञान है (14.16)। सत्वगुण से ज्ञान उत्पन्न होता है, रजोगुण से लोभ और तमोगुण से भ्रम और अज्ञान पैदा होते हैं (14.17)। सत्वगुण में स्थित जीव ऊपर स्वर्गादि उच्च लोकों मे जाते हैं; रजोगुण में स्थापित पुरुष मध्य में पृथ्वीलोक पर ही रहते हैं और तमोगुण में स्थित पुरुष अधोगति की ओर जाते हैं" (14.18)। पुस्तक पढ़ने का उदाहरण हमें गुणों के संदर्भ में कर्मफल को समझने में मदद करेगा। जब हम सत्वगुण से प्रभावित होते हैं, तो हम ज्ञान और समझ प्राप्त करने के लिए कोई पुस्तक पढ़ते हैं। रजोगुण में रहते हुए हम अच्छे अंक पाने के लिए पढ़ते हैं जो तनाव पैदा करता है। तमोगुण में हम पुस्तक पढ़ते-पढ़ते सो जायेंगे।ध्यान देने योग्य बात यह है कि प्रत्येक गुण अपने तरीके से आत्मा को भौतिक शरीर से बांधता है। उपरोक्त श्लोक हमारे जीवनकाल के दौरान हमारे अंदर प्रबल गुण के आधार पर जीवन के विभिन्न पहलुओं की झलक देते हैं।