Listen "मन में उलटे ख्याल आते हैं क्या करूँ ? उत्तर कड़वा है पर सत्य है ! Jai Shree Radha"
Episode Synopsis
"शोभित जी राधे राधे महाराज जी सादर प्रणाम महाराज जी अध्यात्म की तरफ चलते चलते अचानक मन विचलित सा हो जाता है उल्टे से ख्याल आते हैं नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न से होती है महाराज हा व चक संसार का मनोरंजन उसको प्रिय लगता है मन को मन मानी आचरण करना उसको प्रिय लगता है उसकी गलती नहीं है हम जहां उसको लगाते हैं वहीं व राजी होने लगता है जैसे अध्यात्म मार्ग में लगा रहे हैं तो इसमें जहां जहां व लगा रहा है उसके विरुद्ध बात है उसको भोग चाहिए उसको हर इंद्र मना खटा इंद्रियानी प्रकृति स्थान कर सती पांच ज्ञानेंद्रियो ं के द्वारा विषयों में विचर का स्वभाव बना लिया है भगवान कह रहे हैं आप भगवान के अंश मम वांस जीव लोके जीव भूता सनातना मना कष्टा इंद्रिया प्रकृति स्थान कर सती आप इस मन के भुलावे में आकर मन भोगों के लावे में आपको फसाकर यह सदैव अधीन रखा है अब अध्यात्म सुनना शुरू किया अध्यात्म चल तो अध्यात्म में मन को वश में किया जाता है और अभी तक आप मन के वश में रहे तो जब आप सपोर्ट नहीं देंगे तो आपका सपोर्ट करने लगेगा इसकी चाल समझना क्योंकि आपके बिना उसकी कोई सत्ता नहीं वो आपके बिना कुछ नहीं कर सकता आपके दस् कत से ही करेगा जैसे हमारा मन कह रहा है मैं देखूं हम कह रहे नहीं देखना है वो 100 बार कहेगा देखो आप कहोगे नहीं यह देखो अब वो लग जाएगा जिधर आप लगाओगे पर वह कुछ समय तक लगेगा फिर वो आपको वश में करने की कोशिश करेगा और वह जब आप ना करेंगे तो आपको जलाए अगर उस जलन को सह गए तो मन को अधीन कर लेंगे और नहीं सह गए तो मन आपको अधीन कर लेगा ये खेल चल रहा है प्राया सब मन के अधीन ही होते हैं मन को कोई चेला बनाने वही सच्चा गुरु दूसरों को तो चेला बनाना सहज है मन को जो चेला बना ले वही सच्चा गुरु मन ने सबको चेला बना रखा है नही ं बना रखा जैसा जैसा कहता है वैसे करना पड़ता है और बड़ा बात यह है कि मन को हम जैसा कहे शास्त्र आज्ञा से वैसा चला ले सो महात्मा वही गुरु वही भक्त नहीं तो भाई भेस चाहे जो हो मन के अधीनता से मुक्त होना बहुत कठिन होता है कोई बिरला मन को अधीन करके भगवान की प्राप्ति करता है तो आप लोग उसी बरले में है क्योंकि अगर सत्संग मिल रहा है साधु संग मिल रहा है अध्यात्म की बातें सुन रहे हैं अध्यात्म में चल रहे हैं तो हम यह नहीं कह सकते कि हमारे ऊपर भगवान की कृपा नहीं कृपा है पर हमें विचलित नहीं होना कम से कम यह बात आप स्वीकार करते हैं कि कभी-कभी वो हमको गिराने की कोशिश करता है अर्थात आपका बहुत सहयोग देने लगा है तो एक समय था कि हम पूरे उसके अधीन थे आज है कि आधा आधा हो गया है आधा व हमारे अधीन हो रहा है आधा अपले अधीन करना चाहता है तो चढ़ाई और चढ़ते जाओ उसके पॉइंट कम करते जाओ अपने पॉइंट बढ़ाते जाओ कि अब 60 पर अब 65 पर अब 70 पर फिर जिस दिन 100% तुम्हारे अधीन हो गया उसी दिन भगवा न के आनंद का जो स्वरूप है वो प्रकाशित कर देगा अब यह लड़ाई बहुत जोर की है छोटी मटी लड़ाई लई है वह छोटा मोटा शक्तिशाली नहीं बहुत शक्तिशा ली है क्या आपको सपोर्ट देगा राधा राधा राधा मन की स्वाभाविकता और उसका स्वभाव: मन को भोग और इंद्रियों की तृप्ति प्रिय है, और यह स्वभाव प्राकृतिक रूप से बना हुआ है। अध्यात्म मार्ग पर चलते समय मन का विचलित होना और नकारात्मक ख्याल आना सामान्य है।मन को नियंत्रित करने की चुनौती: मन को अपने वश में करना कठिन है, लेकिन यह संभव है। मन को नियंत्रित करने के लिए उसके स्वभाव और चाल को समझना आवश्यक है, और उसे दिशा देने के लिए दृढ़ता और संयम आवश्यक है।अध्यात्मिक अभ्यास में मन का विरोध: जब व्यक्ति अध्यात्मिक मार्ग पर बढ़ता है, तो मन विभिन्न प्रकार से उसे विचलित करने की कोशिश करता है। यह व्यक्ति को भोग और तृप्ति की ओर आकर्षित करके अध्यात्मिक अभ्यास से दूर करने का प्रयास करता है।सतत संघर्ष और सफलता की ओर बढ़ना: अध्यात्मिक मार्ग पर चलते हुए मन और व्यक्ति के बीच संघर्ष चलता रहता है। व्यक्ति को मन के विरुद्ध लगातार प्रयास करना होता है और धीरे-धीरे मन को अपने वश में करने के लिए अपने अंक बढ़ाने होते हैं।सच्चे गुरु की पहचान: सच्चा गुरु वही है जो अपने मन को चेला बना सके। मन को नियंत्रित करना और उसे शास्त्र और अध्यात्मिक मार्ग के अनुसार चलाना ही वास्तविक गुरु की पहचान है। अंततः, जो व्यक्ति मन को नियंत्रित कर लेता है, वही भगवान के आनंद को प्राप्त कर सकता है।